तुम-केवल तुम

भोर आती रही, रात जाती रही
काल का चक्र तुम से ही चलता रहा

एक तन्हाई लेकर तुम्हारी छवि
दस्तकें साँझ के द्वार देती रही
नीड को लौटते पँछियों की सदा
नाम बस इक तुम्हारा ही लेती रही
धुन्ध बढती हुई, दिन छिपे, व्योम में

आकॄति बस तुम्हारी बनाती रही
याद बन कर दुल्हन, रात की पालकी
बैठ, कर सोलह श्रन्गार आती रही

स्वप्न बीते दिनों को बना कूचियाँ
आँख के चित्र रंगीन करता रहा

लेके रंगत तुम्हारे अधर की उषा
माँग प्राची की आकर सजाती रही
पाके सरगम तुम्हारे स्वरों से नई
कोयलें प्यार के गीत गाती रहीं
ले के थिरकन तुम्हारे कदम से नदी
नॄत्य करती हुई खिलखिलाने लगी
गन्ध लेकर तुम्हारे बदन की हवा
मलयजी; वादियों को बनाने लगी

आसमाँ पा तुम्हारी नयन-नीलिमा
अपने दर्पण में खुद को निरखता रहा

जो तुम्हारे कदम के निशाँ थे बने
मन-भरत को हुए राम की पादुका
भाव घनश्याम बन कर निहारा किये
तुम कभी रुक्मिणी थीं कभी राधिका
चित्र लेकर तुम्हारे अजन्ता बनी
बिम्ब सारे एलोरा को तुम से मिले
हैं तुम्ही से शुरू, हैं तुम्ही पर खतम
प्रेम-गाथाओं के रंगमय सिलसिले

एक तुम ही तो शाश्वत रहे प्राण बस
चाहे इतिहास कितना बदलता रहा

थरथराये अधर, जल तरंगें बजीं
सरगमें सैकडों मुस्कुराने लगीं
तुमने पलकें उठा दॄष्टि डाली जरा
हर दिशा दीप्ति से जगमगाने लगी
धूप मुस्कान की जो उगी होंठ से
मन्दिरों में हुई मँगला आरती
पैंजनी की खनक,जैसे वीणा लिये
तान झंकारने हो लगी भारती

इन्द्रधनुषी हुए रंग सुधि के सभी
चित्र हर कल्पना का सँवरता रहा


राकेश खंडेलवाल


1 comment:

Shar said...

"जो तुम्हारे कदम के निशाँ थे बने
मन-भरत को हुए राम की पादुका
भाव घनश्याम बन कर निहारा किये
तुम कभी रुक्मिणी थीं कभी राधिका"
In panktiyon ko Naman!
"धूप मुस्कान की जो उगी होंठ से
मन्दिरों में हुई मँगला आरती"
kitni adbhut kalpana hai!
Haay! Hamne kabhi dekha nahin hai ki hothon se dhoop kaise ugati hai :) .Magar bahut hi pyaara bimb kinch jaati hain aapki yeh panktiyaan. Rajasthan ke padahiyon pe bane mandiron ki yaad aa gayi !!

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