बजी नहीं कोई शहनाई

काजल पहरेदार हो गया
सपने रोके आते आते
रंग बिखर रह गये हवा में
चित्र रहे बस बन कर खाके
होठों की लाली से डर कर
मन की बात न बाहर आई
कंगन करता रहा तकाजा
लेकिन चुप ही रही कलाई

सोचा तो था बांसुरिया के रागों पर सरगम मचलेगी
जाने क्या हो गया बांसुरी कोई गीत नहीं गा पाई

महावर की खींची रेखा को
लांघ नहीं पाया पग कोई
पायल की बेड़ी में बन्दी
घुंघरू की आवाज़ें खोईं
बिछुआ पिसता रहा बोझ से
कुछ कह पाने में अक्षम था
रहा बोरला गुमसुम बैठा
पता नहीं उसको क्या गम था

अटकी हुई तोड़िये की लहरों पर एक अकेली बोली
रह रह नजर झुका लेती थी जाने थी किससे शरमाई

तय तो करती रही अंगूठी
नथनी के मोती तक दूरी
उंगली रुकती रही होंठ पर
जाने थी कैसी मज़बूरी
आतुर बाजूबन्द रहा था
अपने एक बिम्ब को चूमे
लाल हुई कानों की लौ पर
बुन्दों का भी मन था झूमें

उत्कंठा कर रही वावली, जागी हुई भावना मन में
ध्यान लगाये सुना गूँज कर बजी नहीं कोई शहनाई

5 comments:

mehek said...

तय तो करती रही अंगूठी
नथनी के मोती तक दूरी
उंगली रुकती रही होंठ पर
जाने थी कैसी मज़बूरी
आतुर बाजूबन्द रहा था
अपने एक बिम्ब को चूमे
लाल हुई कानों की लौ पर
बुन्दों का भी मन था झूमें
waah ajid kashish,sunder bhav shabd liye geet.bahut badhai.shayad aaj ka sabse khubsurat geet.

कंचन सिंह चौहान said...

sundar ke alaava, kah bhi kya sakti hu.n, aap ki prashansha me...!

Shardula said...

"उत्कंठा कर रही वावली, जागी हुई भावना मन में
ध्यान लगाये सुना गूँज कर बजी नहीं कोई शहनाई"
इसके बाद कहने को शेष ही क्या है !

Shar said...

"काजल पहरेदार" "कंगन करता रहा तकाजा"
"महावर की खींची रेखा" "बिछुआ पिसता रहा बोझ से", "रहा बोरला गुमसुम बैठा"
"अटकी हुई तोड़िये की लहरों पर एक अकेली बोली
रह रह नजर झुका लेती थी जाने थी किससे शरमाई"
"तय तो करती रही अंगूठी,नथनी के मोती तक दूरी", "उत्कंठा कर रही वावली"
=============
जानलेवा !!

Shar said...

उत्कंठा कर रही वावली, जागी हुई भावना मन में

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