अर्पित है गीतों का चन्दन

नतमस्तक हूँ मात शारदे
स्वीकारो मेरा कर वंदन
तुमसे पा आशीष ,तुम्हे ही
अर्पित है गीतों का चन्दन

उदित सूर्य की प्रखर रश्मियाँ
माँ,
भर ​
दो मानस में मेरे
जागे भाव ह्रदय में, उगते
गहन निशाको चीर सवेरे
ज्योतिकलश को छलका दे दो
नूतन शब्द मुझे आंजुरि भर
स्वर के दीपक बालो,छंट लें
अज्ञानों के घने अँधेरे



मनसा वाचा और कर्मणा
अंतस करता है अभिनन्दन
तुमसे पा आशीष तुम्हे ही
है अर्पित गीतों का चन्दन

आदि स्वरों की अधिष्ठात्री
अपनी वीणा को झनकारो
नए भाव दो नए शब्द दो
नवल ऊर्जा को संचारो
सौप कल्पना को परवाज़
उड़ने को नूतन  वितान दो
कहा अनकहा व्यक्त हो सके
अनुभूति कुछ और निखारो

हंसवाहिनी बिखराकर स्मित
दीपित कर दो जन गण का मन
तुमसे पा आशीष समर्पित
तुमको ही गीतों का चन्दन

शतदल कमल पाटलों पर जो
अंकित कविता की परिभाषा
करो प्रकाशित उसे, बुझ सके
आतुर मन की ज्ञान पिपासा
करमाला में हुई अनुस्युत
मंत्रसू्क्तियों को बिखरा दो
पुस्तकधारिणी पृष्ठ खोल कर
पूरी कर दो हर जिज्ञासा


भाषा स्वरा अक्षरा माते
स्वीकारो अनुग्रहिती अर्चन
तुमसे पा आशीष समर्पित
तुमको गीतों का
व्रुन्दावन

1 comment:

sameer said...

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