किसने अलगोजा बजा दिया, मेरी सांसों के तार छेड़
ये कौन सुरभियां बिखराता, सुधियों के मेरे आंगन में
उषा की पहली जगी किरन की ताजा ताजा छुअन लिये
पांखुर से फ़िसले तुहिन कणों की गतियों से चलता चलता
झीलों की लहरों के कंपन जैसे चूनर को लहराता
ये कौन उमंगों में आकर नूतन उल्लास रहा भरता
निस्तब्ध शांत संध्याओं का छाया सन्नाटा तोड़ तोड़
किसने इकतारा बजा दिया मेरे जीवन के आंगन में
वातायन में आकर किसने रंग डाले इन्द्रधनुष इतने
पाटल पर उभरी हैं फ़िर से कुछ प्रेम कथा इतिहासों की
जुड़ गये अचानक नये पृष्ठ इक संवरे हुये कथानक में
राँगोली रँगी कल्पना ने , भूले बिसरे मधुमासों की
किसके आने की है आहट जो टेर बनी बांसुरिया की
किसने पैझनियाँ थिरकाईं, मन के मेरे वृन्दावन में
किसकी पगतालियाँ की छापें रँग रही अल्पनाये अदभुत
सपनो की दहलीजों से ले सूने मन की चौपालों तक
है किसका यह आभास मधुर लहराता हुआ हवाओं में
ये कौन मनोरम प्रश्न बना दे रहा हृदय पर आ दस्तक
कस्तूरी मृग सा भटकाता है कौन मुझे यूं निशि वासर
किसके पग के नूपुर खनके, मन के इस नंदन कानन में
1 comment:
वाह अद्भुत
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