प्रीत का गीत बन गुनगुनाने लगा, शब्द ने छू लिये आपके जो अधर
रश्मियाँ स्वर्णमय हो गईं भोर की, आपने उनको देखा जरा आँख भर
कुन्तलों ने हवाओं की डोरी पकड़, एक ठुमका दिया तो घटा घिर गई
पेंजनी की खनक पर लगीं नाचने,करके श्रॄंगार संध्या निशा दोपहर.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
नव वर्ष २०२४
नववर्ष 2024 दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...
-
हमने सिन्दूर में पत्थरों को रँगा मान्यता दी बिठा बरगदों के तले भोर, अभिषेक किरणों से करते रहे घी के दीपक रखे रोज संध्या ढले धूप अगरू की खुशब...
-
शिल्पकारों का सपना संजीवित हुआ एक ही मूर्त्ति में ज्यों संवरने लगा चित्रकारों का हर रंग छू कूचियां, एक ही चित्र में ज्यों निखरने लगा फागुनी ...
-
प्यार के गीतों को सोच रहा हूँ आख़िर कब तक लिखूँ प्यार के इन गीतों को ये गुलाब चंपा और जूही, बेला गेंदा सब मुरझाये कचनारों के फूलों पर भी च...
7 comments:
बहुत खूब!
बहुत उम्दा.
SARAS...SUNDAR
sundar !
बहुत बढिया.
very nice sir !!
waah
Post a Comment