सिमटने लग गई थी जब उजाले की बिछी चादर
छलकने लग गई थी जब अंधेरे की भरी गागर
हुए यायावरी पग भोर में जो, लौट घर आये
पिघल कर स्वर्ण के टुकड़े, लहर के साथ मुस्काये
नयन में घोल कर विश्वास था तुमने कहा मुझसे
हमारा साथ है जैसा सितारों का रहा नभ से
अभी तक यह अकेला मन , वही पल याद करता है
किसी दिन लौट कर आओगे तुम विश्वास करता है
हथेली पर खिंची रेखायें धुंधली लग गई होने
प्रतीक्षा के सभी पल अब लगे हैं अर्थ भी खोने
बुझी जल जल हजारों बार मन के दीप की बाती
निरन्तर आस की बदली रही छँटती, रही छाती
चली आई पलट कर सिन्धु को उमड़ी हुई आंधी
सिमटने लग गई ब्रज की नदी के तीर की चाँदी
कदम्ब की छांह में मन पर अभी तक रास करता है
किसी दिन लौट कर आओगे तुम विश्वास करता है
निगाहों के विजन में हो नहीं पाई कोई हलचल
बना पत्थर ह्रदय ये वावला, हो भाव से वि्ह्वल
निरुत्तर रह गये सब प्रश्न जो थे सामने आये
मिले जितने, सभी उत्तर समझ में आ नहीं पाये
कदम को रोकने में लग गई जब राह बन बाधा
ह्रदय ने जिस सुनहरी आस का धागा रहा बांधा
वही धागा दिलासे की निरन्तर बात करता है
किसी दिन लौट कर आओगे तुम विश्वास करता है
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5 comments:
रहे विश्वास जीवन का, रहे जीवन की अरुणाई,
चलेगी साँस जब तक, मान लो, तब तक है तरुणाई।
अभी तक यह अकेला मन , वही पल याद करता है
किसी दिन लौट कर आओगे तुम विश्वास करता है
waaris ki likhi heer ki yaad aa gayii..ati sundar..heer aakhdii jogia jhooth bolen te kaun rothRe yaar milawanda ee....ati sundar
... sundar rachanaa !!!
sundar kavita badhai
पिघल कर स्वर्ण के टुकड़े लहर के साथ मुस्काये !
वाह क्या बात है !
गीत का भाव प्रवाह बहुत ही सशक्त है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
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