आपके पाँव की झान्झारों से गिरी

चांदनी ओढ़ कर चांदनी रात में आप आये तो परछइयां धुल गई
आपके पाँव की झान्झारों से गिरी जो खनक ,मोतियों में वही ढल गई
भोर की वे  किरण दिन  पे ताला लगा,थी डगर पर गई सांझ की घूमने
आपको देखने की उमंगें संजो,रात की वे बनी  खिड़कियाँ खुल गई
 
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भोजपत्रों पे लिक्खे हुए मंत्र थे,ओस बन कर गिरे शतदली पत्र पर
शिव तपोभंग को एक उन्माद सा छा गया फिर निखरते हुए सत्र पर 
विश्वामित्री तपस्याएँ खंडित हुई आपकी एक छवि जो गगन में बनी 
आपका नाम बन सूर्य की रश्मियाँ हो गई दीप्तिमय आज   सर्वत्र पर  

4 comments:

News Punjabi said...

nice poem i love to read this......
Christmas flowers

प्रवीण पाण्डेय said...

सौन्दर्यपूर्ण अभिव्यक्ति।

निर्मला कपिला said...

सौन्द्र्य रस से परिपूर्ण रचना। आपको सारस्वत सम्मान मिलने के लिये एडवांस मे बधाई ।

Admin said...

really very nice and impressive i love to read this..........
flowers for Valentine

नव वर्ष २०२४

नववर्ष 2024  दो हज़ार चौबीस वर्ष की नई भोर का स्वागत करने खोल रही है निशा खिड़कियाँ प्राची की अब धीरे धीरे  अगवानी का थाल सजाकर चंदन डीप जला...