नए वर्ष के हे नव सूरज

आओ जीवन के नवल वर्ष
नव आशा से झोली भर दो दो 
बरसों से छाये तिमिरांचल 
को दे प्रकाश  दीपित कर दो 

जो अपनी संकीर्ण प्रवृति के 
हाथों बने हुए कठपुतली 
दूजों के इंगित पर निशिदिन 
नाच रहे हैं बन कर तकली 
उनके अंधियारों को अपने  
ज्योतिदान से करो प्रकाशित 
ताकि नहीं हो पाये फिर से 
उनके मन में तम आयातित 

नये वर्ष के नव पंछी को 
नया व्योम देकर नव पर दो 

निश्चित जीवन के नवल वर्ष
यों फूल उगाओ आँगन में
रंजित हो नहीं रक्त से इक
भी पृष्ठ तुम्हारे दर्पण में
सामन्ती अभिलाषाओं की
संस्कृतियाँ सभी समूल मिटें
सौहार्द्र द्वार पर पुष्पित हो
समृद्धि शांति चहुँ और दिखे

आकाँक्षा कोटि ह्रदय की यज
इस बरस, वर्ष पूरी कर दो
स्वागत जीवन के नवल वर्ष
अभिषेक तुम्हारा अक्षय हो

करते अपने इन सपनों का
श्रुंगार वर्ष बीते कितने
आंखों में बही उतरते हैं
अब आकर के दूजे सपने
इस बार नई कुछ साध नहीं
खाली झोली फ़ैलाते हैं
बूढ़ी होने को आई हैं
वे ही आशा दुहराते हैं

अपना मधुकलश तनिक छलका
दो बूँ आंजुरी में भर दो
स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
सुख कोष  तुम्हाराअनवर हो

फिर करो अंकुरित नवल वर्ष
स्वर्णिम इतिहासों की वर्णित
अलकापुरोयों के एप्रतिकृतियाँ
हों गली गांव आकर सज्जित
पीड़ा के सज्ल क्षणों को तुम
कर दो शतवर्षी वनवासी
जनमानस के मस्तक रच दो
अनुकूल विभायें विधना की

जो तुमसे रहीं अपेक्षायें
इस बार सभी पूरी कर दो
स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
सुख कोष  तुम्हाराअनवर हो

हे नये वर्ष के नव सूरज
सोनहली किरनें बिखाराओ
प्राची में और प्रतीची में
फ़िर उत्तर दक्षिण गुंजाओ
अपने घोड़ों की टापों से
हर दिन को सौंपो ताल नई
सपना फिर जागे हर सोया
हो सब साधों की चाल नई

फिर से सोनहले सपनों को
नव सूरज संजीवित कर दो
स्वागत जीवन के नवल वर्ष
अभिषेक तुम्हारा अक्षय हो

1 comment:

Udan Tashtari said...

AApko bhi saparivaar nav varsh ki anek badhai evam shubhkamnayen.

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