वाशिंगटन में ऋतु परिवर्तन

हटा रजाई हिम की, खोले आँखें दूब छरहरी 
यौवन की अंगड़ाई लेकर जागी धूप  सुनहरी 
नदिया की लहरों ने छाई तंद्राओं को तोड़ा 
तम गठरी में छुपा, लगा जलते सूरज का कोड़ा 
बगिया में नन्ही गौरैया फुदक फुदक कर गाई 
भागा शिशिर और आँगन में बासंती ऋतु  आई 

दी उतार नभ ने ओढ़ी थी चादर एक सलेटी
और ताक पर रखी उठा अपनी शरदीली पेटी
किया आसमानी रंगत में कुरता रेशम वाला
रंग बिरंगे कनकौओं को आमंत्रण दे डाला
पछ्गुआ ने पथ छोड़ा , लहरी आकर के पुरबाई
भागा शिशिर और आँगन में बासंती ऋतु  आई

टायडल बेसिन पर चैरी के फूल नींद से जागे
हटे सभी पर्यटन स्थलों से निर्जनता के धागे
यातायात बढ़ा जल थल का और वायु के पथ का
और वाटिका के फूलों में रंग पलाश सा दहका
पाँच बजे से पहले छाती प्राची में अरुणाई
भागा शिशिर और आँगन में बासंती ऋतु  आई

1 comment:

Udan Tashtari said...

मानो पर्यटन विभाग कवित्त मय वाशिंगटन की बात कर रहा हो..वाह!! उम्दा!!

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