मुझे झुकने नहीं देता

तुम्हारे और मेरे बीच
की यह सोच का अंतर
तुम्हें मुड़ने नहीं देता
मुझे झुकने नहीं देता

कटे तुम आगतों से
औ विगत से
आज में जीते
वही आदर्श ओढ़े
मूल्य जिनके
आज हैं रीते

विकल्पों की सुलभता को
तुम्हारा दम्भ आड़े आ
कभी चुनने नहीं देता

उठाकर मान्यताओं
की धरोहर
चल रहा हूँ मैं
मिले प्रतिमान विरसे में
उन्हें साँचा  बनाकर
ढल रहा हूँ में

वसीयत में मिला
अनुबंध अगली पीढ़ियों का
राह में रुकने नहीं देता

तुम्हारा  मानना
परिपाटियां
अब हो चुकी खँडहर
मेरी श्रद्धाएँ
संचित डगमगाई
है नहीं पल पर

मेरा विश्ववास दीपित
आस्थाओं की बंधी गठरी
कभी खुलने नहीं देता 

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